Saturday, February 9, 2013

आज फिर याद आए तुम..........फाल्गुनी


आज जब हरे-हरे खेतों में
सरसरा उठी मेरी चुनरी
सरसों में लिपट गई
नटखट बावरी 
तब उसे छुड़ाते हुए
याद आए तुम और तुम्हारा हाथ
जिसने निभाया था कभी मेरा साथ 
 

यादों की कोमल रेशम डोर
उलझ गई बेतरह
आज सुलझाते हुए धानी चुनर

आज याद आए
तुम्हारे साथ बिताए
वो हसीन लम्हात

आज फिर देखा मैंने
किसी तितली के पँखों को
पँखों के रंगों को
रंगों से सजी आकृति को
आज फिर याद आए
तुम, तुम्हारी तुलिका, तुम्हारे रंग।

आज फिर बरसी
जमकर बदली
आज फिर याद आई
तुम्हारी देह संदली।



उस नीले बाल-मयूर की कसम
जिसे तुमने मेरे लिए
शाख से उतारा था हौले से
खुब याद आया
तुम्हारा दिल नरम-नरम

कच्चे केसरिया सावन में
खिलते हर्षाते खेत में
आज फिर याद आए तुम
तुमसे जुड़ी हर बात
घनघोर बरसात के साथ। 
-स्मृति आदित्य

12 comments:

  1. बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ

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  2. सुन्दर प्रस्तुति -
    आभार आदरेया ||

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  3. मौसम की आदत ही कुछ ऐसी है ... कभी भूल जाने को कहती हो ..तो कभी भूले-भटके आने को.....
    ------------------
    उम्दा रचना ...

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    Replies
    1. हेलो राहुल
      कहाँ रहते हैं आप
      आभार

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  4. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ स्मृति जी

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  5. सुंदर पंक्तियाँ यादों की कोमल रेशम डोर
    उलझ गई बेतरह
    आज सुलझाते हुए धानी चुनर

    आज याद आए
    तुम्हारे साथ बिताए
    वो हसीन लम्हात new post "pi ke matwala rahe"

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  6. वाह!......
    यादों के कोमल रेशमी डोर
    .................
    तुम, तुम्हारी तूलिका , तुम्हारे रंग!
    सबकुछ सुंदर!!!

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