Saturday, September 21, 2013

पत्नी तो नहीं हैं न हम आपकी..............दिविक रमेश

नहीं लिखा गया तो
एक ओर रख दिया कागज
बंद कर दिया ढक्कन पॆन का
ऒर बैठ गया लगभग चुप
माथा पकड़ कर।

"रूठ गए क्या",
आवाज आई अदृश्य
हिलते हुए
एक ओर रखे कागज से,
"हमें भी तो मिलनी चाहिए न कभी छुट्टी।
पत्नी तो नहीं हैं न हम आपकी!"

बहुत देर तक सोचता रहा मैं
सोचता रहा-

पत्नी से क्यों की तुलना
कविता ने?

करता रहा देर तक हट हट
गर्दन निकाल रहे
अपराध बोध को।

खोजता रह गया कितने ही शब्द
कुतर्कों के पक्ष में।
बचाता रहा विचारों को
स्त्री विमर्श से।

पर कहाँ था इतना आसान निकलना
कविता की मार से!

रह गया बस दाँत निपोर कर--
कॊन समझ पाया है तुम्हें आज तक ठीक से
कविता?

"पर
समझना तो होगा ही न तुम्हें कवि।"
आवाज फिर आई थी
ऒर मॆं देख रहा था
एक ओर पड़ा कागज
फिर हिल रहा था।


-दिविक रमेश

http://divikramesh.blogspot.in/2012/10/blog-post_21.html

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा : हम लड़की का जन्म क्यूँ नहीं चाहते ? -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-007

    ललित वाणी पर : कविता कैसे बन जाती है

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  2. शुभप्रभात छोटी बहना
    बेजोड़ चुनाव
    शुभ दिन

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक आज शनिवार (21-09-2013) को "एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश" (चर्चा मंचःअंक-1375) पर भी होगा!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. सार्थक प्रस्तुती का चुनाव, बहुत अच्छी लगी.

     आंधी

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
    क्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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