Friday, May 2, 2014

आवाज़............दीप्ति शर्मा




 









आवाज़ जो
धरती से आकाश तक
सुनी नहीं जाती
वो अंतहीन मौन आवाज़
हवा के साथ पत्तियों
की सरसराहट में
बस महसूस होती है
पर्वतों को लाँघकर
सीमाएँ पार कर जाती हैं
उस पर चर्चायें की जाती हैं
पर रात के सन्नाटे में
वो आवाज़ सुनी नहीं जाती
दबा दी जाती है
सुबह होने पर
घायल परिंदे की
अंतिम साँस की तरह
अंततः दफ़न हो जाती है
वो अंतहीन मौन आवाज़


-दीप्ति शर्मा
प्राप्ति स्रोतः साहित्य कुंज

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (03-05-2014) को "मेरी गुड़िया" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1601 में अद्यतन लिंक पर भी है!
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. na lay hun na saj hun.
    ek gumshuda awaj hun.
    duniya ko khush kar aya,
    aur khud se naraj hun. www.skyfansclub.blogspot.com

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  3. सुन्दर रचना,सुन्दर प्रस्तुति।

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