Sunday, March 1, 2015

~होरी में.....प्रवीण करण







 













चांद-के गाल पे रंग लगा दओ होरी में
चांद-ए बाने अपओं बना लओ होरी में

चांद के आंगे पीछो फिरतो
आंगे फिरतो पीछे फिरतो
वई चांद-ए-संग बिठा लओ होरी में


चांद के पीछे पागल जैसो
पागल जैसो घायल जैसो
वई चांद-ए-संग नचा लओ होरी में

चांद मिले तो छूके देखों
छूके देखों छककर देखों
वई चांद-ए-अंग लगा लओ होरी में

जा होरी से चांद है मेरो
चांद है मेरो चांद है मेरो
सबे दिखा दओ सबे जता दओ होरी में
चांद-ए दिल का घाव दिखा दओ होरी में
चांद-ए दिल को दर्द सुना दओ होरी में

~प्रवीण करण
लेखक व कवि

4 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

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  2. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (02-03-2015) को "बदलनी होगी सोच..." (चर्चा अंक-1905) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ही उम्‍दा रचना प्रस्‍तुत की है आपने। इसके लिए धन्‍यवाद।

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