Wednesday, February 24, 2016

हम सोचते हैं.....महेश रौतेला

यह शहर..... 
आदमी के साथ
जीता और मरता है,

दादी कहती है 
उसके ज़माने में
ऐसा-ऐसा होता था,

माँ कहती है
उसके समय में नदी 
यहाँ तक बहती थी,

लोग कहते हैं
उन्होंने घना जंगल देखा था,
ठेकेदार बोलता है
उसने अनगिनत अवैध 
कटान किया है,

बड़े सोचते हैं
उनके समय पढ़ाई अच्छी होती थी,
किसान कहता है
पहले बारिश समय से बरसती थी,

हम सोचते हैं
तब मधुर संगीत बजता था
प्यार दिखाई देता था,
और आदमी मुर्दा ही नहीं
क्रांतिकारी भी होता है।









-महेश रौतेला

7 comments:

  1. शुभप्रभात दीदी...
    चुन कर रचना लाई है आपने....

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  2. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें

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  3. बहुत ही उत्तम कोटि की रचना ।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 25-02-2016 को चर्चा मंच पर विचार करना ही होगा { चर्चा - 2263 } में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 25 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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