Tuesday, July 5, 2016

हमने उनको पास बुलाया लेकिन वो ही आ न सके....महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश



हमने उनको पास बुलाया लेकिन वो ही आ न सके
ख़त में सब कुछ लिख न सके, दिल भी अपना दिखला न सके

दिन, हफ़्ते, माह बीत गए अब तो , कितने ही साल हुए
ना आना था आ  न सके, संदेसा तक भिजवा न सके

बचपन बीता और जवानी भी अब तो लाचार हुई
पागल दिल में आस अभी है, इसको हम समझा न सके

लगता है चुपके से कभी आ जाएँ वो यूँ ही न कहीं
मिलने के वो ख़्वाब मेरी आँखों से अब तक जा न  सके

कुछ तो कर लो होश ख़लिश, दुनिया की सुन लो बात ज़रा
 दुनिया का दस्तूर यही जाने वाले फिर आ न सके.

बहर --- २२-२२  २११२  २२-२२  २२११  २ 


-महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

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