Friday, April 28, 2017

शमशीर हाथ में हो....गंगाधर शर्मा "हिन्दुस्तान"

शमशीर हाथ में हो ओ तमाम तक न पहुँचे।
बुजदिल बड़ी सियासत जो नियाम तक न पहुँचे॥


सतसंग की परीक्षा जिस ने भी पास कर ली।
मुमकिन नहीं कि फिर वो घनश्याम तक न पहुँचे॥

शिकवा करूँ मैं कैसे कि जवाब क्यों न आया।
गुमनाम सारे ख़त थे गुलफ़ाम तक न पहुँचे॥


अब रोक दे ओ मालिक सब गर्दिशें ख़ला की।
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे॥

जब ओखली में पूरा सर ही फँसा दिया तो।
मुगदर से क्यों कहें कि अंजाम तक न पहुँचे॥

"हिन्दोस्तां" भी या रब कब तक बचा सकेगा।
जो ये तार तार खेमे ख़य्याम तक न पहुँचे॥
-गंगाधर शर्मा "हिन्दुस्तान"

नियाम = म्यान, गुलफ़ाम =फूल का रंग

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